नई दिल्ली: संसद के दोनों सदनों से पारित होने के बाद वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही यह विधेयक अब कानून का रूप ले चुका है। केंद्र सरकार ने इस बाबत अधिसूचना भी जारी कर दी है। कानून बनने के साथ ही अब वक्फ बोर्ड किसी भी संपत्ति पर मनमाने तरीके से दावा नहीं कर सकेगा। विशेष रूप से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित स्मारकों पर वक्फ का दावा अब स्वत: समाप्त हो जाएगा।
क्या है ‘उम्मीद’ कानून?
नए कानून का नाम यूनिफाइड वक्फ मैनेजमेंट एंपावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट बिल (उम्मीद), 2025 है। यह विधेयक लोकसभा में 3 अप्रैल और राज्यसभा में 4 अप्रैल को पारित हुआ था। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून 5 अप्रैल से प्रभावी हो गया।
प्रमुख बदलाव:
- सरकारी संपत्तियों पर अब वक्फ का दावा नहीं: किसी भी सरकारी जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकता।
- ASI संरक्षित स्मारकों पर वक्फ दावा खत्म: एएसआई की सूची में शामिल धरोहरों को वक्फ संपत्ति मानने की प्रक्रिया समाप्त।
- विवाद की स्थिति में अदालत में चुनौती: अब किसी भी संपत्ति को वक्फ घोषित करने से पहले ठोस सत्यापन जरूरी होगा।
- पांच साल से इस्लाम धर्म का पालन जरूरी: जो व्यक्ति संपत्ति दान करना चाहता है, वह कम से कम 5 वर्षों से इस्लाम धर्म का अनुयायी होना चाहिए।
- महिलाओं को भी वक्फ संपत्ति में अधिकार: अब मुस्लिम महिलाओं को वक्फ-अल-औलाद (पारिवारिक वक्फ) में उत्तराधिकार का अधिकार मिलेगा। विधवा, तलाकशुदा और अनाथ महिलाएं भी हकदार होंगी।
आदिवासी इलाकों को विशेष संरक्षण
नए कानून के अनुसार, आदिवासी बहुल राज्यों व क्षेत्रों में जमीन को वक्फ संपत्ति घोषित नहीं किया जा सकेगा। संविधान की 5वीं और 6ठी अनुसूची का हवाला देते हुए यह प्रावधान जोड़ा गया है। इससे झारखंड, छत्तीसगढ़, पूर्वोत्तर राज्यों समेत कई क्षेत्रों में जमीन की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
पारदर्शिता के लिए तकनीकी पहल
- केंद्रीय वक्फ पोर्टल अनिवार्य: मुतवल्लियों को 6 महीने में अपनी संपत्तियों का विवरण ऑनलाइन देना होगा।
- सालाना ऑडिट जरूरी: जिन वक्फ संस्थाओं की आमदनी ₹1 लाख से अधिक है, उन्हें वार्षिक ऑडिट कराना अनिवार्य होगा।
बोर्ड में होगा सबका प्रतिनिधित्व
- गैर मुस्लिम और महिलाएं भी होंगी शामिल: वक्फ बोर्ड और परिषद में अब गैर मुस्लिम सदस्य और कम से कम दो महिलाएं नियुक्त होंगी।
- फैसलों में पसमांदा, पिछड़े और अन्य मुस्लिमों की भागीदारी: निर्णय प्रक्रिया में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया है।
लंबी बहस और संशोधन के बाद पारित हुआ विधेयक
यह विधेयक पिछले साल अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया था और संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा गया था। जेपीसी की सिफारिशों के बाद इसे फिर से संसद में प्रस्तुत किया गया। लोकसभा में 12 घंटे और राज्यसभा में 13 घंटे की चर्चा के बाद यह विधेयक पारित हुआ।
- लोकसभा में वोटिंग: पक्ष में 288, विरोध में 232 मत
- राज्यसभा में वोटिंग: पक्ष में 128, विरोध में 95 मत




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