यूपी में स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने की रफ्तार धीमी, केंद्र का अनुदान फंसने की आशंका

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लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सरकारी भवनों पर स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने की प्रक्रिया सुस्त पड़ती नजर आ रही है। सरकार द्वारा बार-बार निर्देश देने के बावजूद, अब तक केवल 15 प्रतिशत सरकारी भवनों में ही स्मार्ट मीटर लगाए जा सके हैं।

प्रदेश में विद्युत वितरण कंपनियों ने सरकारी भवनों के बजाय घरेलू उपभोक्ताओं के परिसर में मीटर लगाने को प्राथमिकता दी है। इसका सीधा असर केंद्र सरकार से मिलने वाले अनुदान पर पड़ सकता है, क्योंकि निर्धारित लक्ष्य पूरा न होने की स्थिति में आरडीएसएस योजना के तहत मिलने वाली धनराशि रुक सकती है।

31 मार्च तक सभी सरकारी भवनों में स्मार्ट मीटर लगाने का आदेश

उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन प्रबंधन ने सभी निगमों को सख्त निर्देश दिए हैं कि 31 मार्च तक सभी सरकारी भवनों पर स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने का कार्य पूरा किया जाए। इसके अलावा, ऊर्जा मंत्रालय के उस आदेश का भी पालन नहीं हो पाया है, जिसमें हर महीने पुराने और नए मीटरों का मिलान करने और पांच प्रतिशत चेक मीटर लगाने का निर्देश दिया गया था।

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पावर कॉरपोरेशन के अनुसार, प्रदेश में कुल 2 करोड़ 59 लाख 57 हजार 26 स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाए जाने थे। 5 फरवरी तक केवल 9,79,371 स्मार्ट प्रीपेड मीटर उपभोक्ताओं के परिसरों में ही लगाए जा सके हैं। सरकारी भवनों और कार्यालयों के लिए 1,15,055 स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, लेकिन अब तक मात्र 17,440 मीटर ही लगाए जा सके हैं, जो कुल लक्ष्य का केवल 15 प्रतिशत है।

उपभोक्ता परिषद ने उठाए सवाल

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने इस मामले में सवाल उठाते हुए कहा कि अब तक पांच प्रतिशत पुराने मीटरों को चेक मीटर के रूप में लगाने का निर्देश दिया गया था, लेकिन केवल 45,734 चेक मीटर ही स्थापित किए गए हैं। उन्होंने मांग की है कि यदि मीटरों का मिलान किया गया है, तो इसका डेटा सार्वजनिक किया जाए।

अनुदान रोकने की चेतावनी

इस मामले में पावर कॉरपोरेशन के अध्यक्ष डॉ. आशीष कुमार गोयल ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि 31 मार्च तक सभी सरकारी कार्यालयों और भवनों में स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने का कार्य पूरा किया जाए। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर यह कार्य तय समय सीमा तक पूरा नहीं हुआ, तो केंद्र सरकार की आरडीएसएस योजना के तहत मिलने वाला अनुदान रोक दिया जा सकता है।

अब देखना यह होगा कि पावर कॉरपोरेशन और विद्युत वितरण कंपनियां इस लक्ष्य को तय समय पर पूरा कर पाती हैं या नहीं।

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