उत्तर प्रदेश में बिजली के निजीकरण के खिलाफ विरोध प्रदर्शन लगातार 89वें दिन भी जारी रहा। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र ने ऊर्जा मंत्री श्री अरविंद कुमार शर्मा द्वारा विधान परिषद में निजीकरण के पक्ष में दिए गए वक्तव्य को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए इसका कड़ा विरोध किया है। समिति का कहना है कि प्रदेश में बिजली वितरण निगमों की स्थिति लगातार सुधार रही है और महाकुंभ में बिजली कर्मियों ने अपने उत्कृष्ट कार्य से पूरे देश को चकित कर दिया है। इसके बावजूद निजीकरण की ओर कदम बढ़ाए जाने से बिजली कर्मचारियों में भारी आक्रोश व्याप्त है।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों का कहना है कि विकसित भारत के निर्माण के लिए बिजली का निजीकरण नहीं, बल्कि इसे सार्वजनिक क्षेत्र में बनाए रखना प्राथमिक आवश्यकता है। उनका तर्क है कि निजी क्षेत्र के लिए बिजली एक व्यापार मात्र है, जबकि सार्वजनिक क्षेत्र इसे सेवा के रूप में देखता है। आगरा में टोरेंट कंपनी का उदाहरण इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है, जहां निजीकरण के चलते पावर कॉर्पोरेशन को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है।
आगरा मॉडल पर सवाल संघर्ष समिति ने ऊर्जा मंत्री से यह स्पष्ट करने की मांग की है कि टोरेंट कंपनी को प्रति यूनिट बिजली किस दर पर मिल रही है और वह पॉवर कॉर्पोरेशन को कितने में बेच रही है? रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023-24 में इस व्यवस्था के चलते 275 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है, जबकि कंपनी ने 800 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया। यदि इस निजीकरण मॉडल की समय रहते समीक्षा की जाती तो पावर कॉर्पोरेशन को 1000 करोड़ रुपये का लाभ होता। पिछले 15 वर्षों में आगरा के निजीकरण से ही हजारों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।

सरकारी वितरण निगमों में सुधार संघर्ष समिति ने इस बात पर जोर दिया कि उत्तर प्रदेश में बिजली वितरण निगमों में लगातार सुधार हो रहा है। भारत सरकार द्वारा जारी विद्युत वितरण कंपनियों की रेटिंग में पूर्वांचल एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की प्रगति की सराहना की गई है। आरडीएसएस योजना के तहत राज्य में विद्युत वितरण नेटवर्क सुधारने के लिए हजारों करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं, जिससे बिजली व्यवस्था में निरंतर सुधार हो रहा है।
निजीकरण की क्या जरूरत? संघर्ष समिति के अनुसार, दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम ने वर्ष 2023-24 में प्रति यूनिट 4.47 रुपये की दर से राजस्व वसूला है, जो कि आगरा में टोरेंट पॉवर कंपनी द्वारा दिए जा रहे 4.36 रुपये प्रति यूनिट से अधिक है। जबकि आगरा एक औद्योगिक शहर है और वहां चमड़ा उद्योग तथा पांच सितारा होटल बड़ी संख्या में हैं, इसके विपरीत दक्षिणांचल निगम बुंदेलखंड और चंबल जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत है, जहां राजस्व वसूली की संभावनाएं सीमित हैं। इसके बावजूद निगम बेहतर प्रदर्शन कर रहा है, तो फिर निजीकरण की जरूरत क्यों?
महाकुंभ में किया शानदार प्रदर्शन संघर्ष समिति ने महाकुंभ में बिजली कर्मियों के कार्यों की सराहना की और कहा कि प्रयागराज में कार्यरत कर्मचारियों ने 5 जनवरी को हुई बिजली महापंचायत में शपथ ली थी कि वे महाकुंभ में श्रेष्ठतम प्रदर्शन करेंगे। बिजली कर्मियों ने इसे सिद्ध कर दिखाया है और उनकी कड़ी मेहनत से महाकुंभ की बिजली व्यवस्था पूरे देश के लिए एक मिसाल बन गई है।
बिजली कर्मियों में रोष, आंदोलन जारी संघर्ष समिति ने कहा कि उत्तर प्रदेश के बिजली कर्मचारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सुधार की दिशा में लगातार प्रयासरत हैं, लेकिन उनकी मेहनत को अनदेखा कर निजीकरण की प्रक्रिया तेज की जा रही है। इससे कर्मचारियों में गहरा असंतोष है और आंदोलन और अधिक तेज किया जाएगा।
आज 89वें दिन भी प्रदेशभर में सभी जनपदों और परियोजना मुख्यालयों पर बिजली कर्मियों ने विरोध सभाएं कीं और सरकार से निजीकरण की प्रक्रिया को रोकने की मांग की।
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