जाति सर्वेक्षणों ने बदला सियासी समीकरण: बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना की पहल से केंद्र पर बना दबाव

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नई दिल्ली। केंद्र सरकार द्वारा आगामी जनगणना में जाति गणना को शामिल करने के फैसले को राष्ट्रीय नीति में एक अहम बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस निर्णय के पीछे विपक्षी शासित राज्यों बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना की ओर से कराए गए जाति सर्वेक्षण और विपक्ष के दबाव का बड़ा योगदान है।

बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना – इन तीन राज्यों ने जातिगत सर्वेक्षण कर सामाजिक-राजनीतिक विमर्श की दिशा बदल दी। इन सर्वेक्षणों के आंकड़ों ने न केवल आबादी में पिछड़े वर्गों की बड़ी हिस्सेदारी को उजागर किया बल्कि केंद्र सरकार की नीति निर्माण प्रक्रिया पर भी सीधा प्रभाव डाला।

बिहार जातिगत गणना कराने वाला पहला राज्य बना। फरवरी 2020 में राज्य विधानसभा ने सर्वसम्मति से जाति आधारित जनगणना के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन सरकार ने सर्वेक्षण को आगे बढ़ाया। 2 अक्टूबर 2023 को जारी हुए परिणामों में सामने आया कि राज्य की कुल आबादी 13.07 करोड़ में से 63% से अधिक ओबीसी और ईबीसी वर्ग के हैं। ओबीसी की संख्या 3.54 करोड़ (27%) और ईबीसी की संख्या 4.7 करोड़ (36%) पाई गई।

सर्वेक्षण ने आर्थिक असमानता की भी तस्वीर सामने रखी। लगभग 34% परिवारों की मासिक आय ₹6,000 या उससे कम थी। अनुसूचित जातियों में यह अनुपात और अधिक – लगभग 44% – दर्ज किया गया। राज्य में केवल 7% लोगों के पास स्नातक डिग्री है, जो शिक्षा और बेरोजगारी की गंभीर स्थिति को दर्शाता है।

तेलंगाना में जाति सर्वेक्षण कांग्रेस के 2023 विधानसभा चुनावी वादों में प्रमुख था। कांग्रेस की जीत में गौड़, मुन्नुरू कापू और यादव जैसे पिछड़े समुदायों की भूमिका महत्वपूर्ण रही। सर्वेक्षण में बताया गया कि राज्य की आबादी में बीसी की हिस्सेदारी 56.33%, एससी की 17.43% और एसटी की 10.45% है। मुस्लिम आबादी 12.56% थी, जिसमें से 10.08% बीसी मुस्लिम और 2.48% ओसी मुस्लिम हैं।

राजनीतिक रूप से कांग्रेस और भाजपा ने पिछड़ी जातियों को प्रतिनिधित्व देने में बीआरएस से अधिक सक्रियता दिखाई। बीआरएस ने 22 सीटें पिछड़ी जातियों को दीं, जबकि कांग्रेस और भाजपा ने क्रमशः 34 और 45 उम्मीदवार उतारे।

कर्नाटक में जाति सर्वेक्षण की शुरुआत 2015 में हुई थी, लेकिन राजनीतिक मतभेदों के चलते रिपोर्ट फरवरी 2025 में जारी की गई। सर्वेक्षण में चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि राज्य की 69.6% आबादी ओबीसी वर्ग से संबंधित है। इससे पहले यह आंकड़ा काफी कम आंका गया था। रिपोर्ट में ओबीसी कोटे को 32% से बढ़ाकर 51% करने की सिफारिश की गई है।

हालांकि, लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों ने रिपोर्ट को अवैज्ञानिक बताते हुए खारिज कर दिया है। उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने रिपोर्ट जारी करने का विरोध किया, जबकि मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कैबिनेट के माध्यम से 11 अप्रैल को इसकी समीक्षा कराई।

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