उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और कथावाचक अनिरुद्धाचार्य महाराज के पुराने वायरल वीडियो को लेकर सियासी सरगर्मी तेज हो गई है। इस विवाद पर अब समाजवादी पार्टी की मछलीशहर (जौनपुर) से सांसद प्रिया सरोज ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने धार्मिक मंचों से की गई टिप्पणियों पर कड़ा ऐतराज जताया है और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट करते हुए अनिरुद्धाचार्य महाराज को निशाने पर लिया है।
प्रिया सरोज ने लिखा –
“जब एक बाबा कृष्ण जी का नाम बताने में असफल हो जाता है, तो अपनी छवि सुधारने के लिए सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नाम हिंदू-मुस्लिम से जोड़कर देश-प्रदेश का माहौल खराब करते हैं। यही सिखाते हैं, ये अपने प्रवचन में?”
इस पोस्ट के साथ उन्होंने अनिरुद्धाचार्य महाराज की एक तस्वीर भी साझा की।
सोशल मीडिया पर बढ़ी बहस
सांसद की इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर बहस तेज हो गई है। कुछ यूजर्स ने प्रिया सरोज की बात को “सत्य और साहस की आवाज़” बताया, वहीं कुछ ने इसे “संत समाज के खिलाफ बयान” करार दिया। राजनीतिक गलियारों में इसे अनिरुद्धाचार्य महाराज पर सपा सांसद का सीधा हमला माना जा रहा है।
क्या है पूरा मामला?
दरअसल, हाल ही में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और अनिरुद्धाचार्य महाराज का एक पुराना वीडियो वायरल हुआ था। इस वीडियो में अखिलेश यादव महाराज से पूछते नजर आ रहे हैं कि –
“मां यशोदा ने भगवान कृष्ण को सबसे पहले किस नाम से पुकारा था?”
इस सवाल पर अनिरुद्धाचार्य महाराज कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाए थे।
अब इस मुद्दे पर 16 जुलाई को अनिरुद्धाचार्य महाराज ने प्रवचन के दौरान प्रतिक्रिया दी। उन्होंने अखिलेश यादव का नाम लिए बिना कहा –
“उत्तर प्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने मुझसे कहा कि तुम्हारा रास्ता अलग और मेरा रास्ता अलग, सिर्फ इसलिए कि मैंने उनके मनमुताबिक जवाब नहीं दिया। लेकिन मैंने वही जवाब दिया जो सत्य था। वो मुसलमानों से नहीं कहते कि तुम्हारा रास्ता अलग और हमारा रास्ता अलग। वो मुसलमानों से कहते हैं कि तुम्हारा रास्ता ही हमारा रास्ता है।”
राजनीतिक और धार्मिक मंचों के टकराव पर चिंता
सांसद प्रिया सरोज ने अपनी पोस्ट के माध्यम से यह संकेत भी दिया कि धार्मिक मंचों से समाज को बांटने वाली बातें भारतीय लोकतंत्र और सांस्कृतिक समरसता के खिलाफ हैं। उन्होंने इशारों में कहा कि संतों और कथावाचकों को संयमित भाषा का प्रयोग करना चाहिए, विशेषकर जब वे सार्वजनिक मंचों से प्रवचन देते हैं।
यह विवाद ऐसे समय पर सामने आया है जब देश में धर्म और राजनीति के मुद्दों पर संवेदनशीलता लगातार बढ़ रही है। अब देखना यह होगा कि सपा और संत समाज के बीच यह बहस किस दिशा में जाती है और क्या कोई संतुलित संवाद स्थापित हो पाता है या नहीं।


