बहुचर्चित शुभांग हत्याकांड: 18 साल बाद आया फैसला, दो आरोपियों को उम्रकैद

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आज़मगढ़: जिले में 18 साल पहले हुए बहुचर्चित शुभांग हत्याकांड में आज न्यायालय ने अहम फैसला सुनाया। अपर सत्र न्यायाधीश कोर्ट नंबर 3 जैनेंद्र कुमार पांडेय की अदालत ने दो आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाते हुए प्रत्येक पर 45-45 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।

क्या था पूरा मामला?

जनपद आज़मगढ़ के सदावर्ती निवासी अजीत कुमार रुंगटा का बेटा शुभांग रुंगटा, जो ज्योति निकेतन स्कूल में कक्षा 7 का छात्र था, 31 अगस्त 2006 को स्कूल जाने के बाद वापस नहीं लौटा। खोजबीन के दौरान उसकी साइकिल स्कूल के स्टैंड में ही मिली। उसी रात 9 बजे अजीत रुंगटा के पास फिरौती के लिए फोन आया, जिससे मामला अपहरण का निकला।

पुलिस ने जब घर के नाबालिग नौकर से कड़ी पूछताछ की, तो उसने अपहरण और हत्या की साजिश का खुलासा किया। उसने बताया कि फिरौती के लिए शुभांग का अपहरण किया गया था और उसे सिधारी थाना क्षेत्र के जमालपुर गांव में प्रमोद यादव उर्फ बालू यादव के घर में रखा गया था। पहचान लिए जाने के डर से शुभांग की गला दबाकर हत्या कर दी गई और शव को शारदा टॉकीज के पास नदी किनारे सरपत के झुरमुट में फेंक दिया गया।

2 सितंबर 2006 को पुलिस ने नाबालिग नौकर की निशानदेही पर शव बरामद किया। मामले में चार आरोपियों—प्रमोद यादव उर्फ बालू यादव, अजीत कुमार शर्मा और दो नाबालिगों—के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई। नाबालिग आरोपियों का मामला किशोर न्याय बोर्ड को भेज दिया गया।

न्यायालय का फैसला

मामले की सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष की ओर से सहायक शासकीय अधिवक्ता दीपक कुमार मिश्रा ने 8 गवाहों को अदालत में पेश किया। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद न्यायालय ने प्रमोद यादव उर्फ बालू यादव और अजीत कुमार शर्मा को उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके साथ ही प्रत्येक पर 20-20 हजार रुपये अपहरण के लिए, 20-20 हजार रुपये हत्या के लिए और 5-5 हजार रुपये शव छिपाने के लिए जुर्माना लगाया गया।

पीड़ित परिवार की प्रतिक्रिया

शुभांग के पिता अजीत रुंगटा ने फैसले पर संतोष जताते हुए कहा, “भगवान के घर देर है, लेकिन अंधेर नहीं। हमें देर से सही, लेकिन न्याय मिला।”

सरकारी पक्ष की प्रतिक्रिया

सहायक शासकीय अधिवक्ता दीपक कुमार मिश्रा ने कहा, “अभियोजन पक्ष ने मजबूती से गवाही प्रस्तुत की, जिसके चलते दोषियों को सजा मिली। यह न्याय की जीत है।”

18 साल बाद आए इस फैसले से पीड़ित परिवार को न्याय मिला, लेकिन यह घटना एक मासूम की जिंदगी छिन जाने का दर्द भी याद दिलाती है।

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