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UPP News:32 पुलिस कप्तान कैसे हुए फर्जीवाड़े का शिकार

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UPP News :32 पुलिस कप्तान कैसे हुए फर्जीवाड़े का शिकार 19 साल तक 32 पुलिस कप्तान एक फर्जीवाड़े का शिकार होते रहे। वे अपने ही सरकारी आवास का किराया एक अधिवक्ता को देते रहे, लेकिन किसी अधिकारी ने न तो इसकी जांच कराई और न ही दस्तावेजों की पड़ताल की। हालांकि, अब इस धोखाधड़ी का पर्दाफाश हो चुका है, लेकिन चार महीने बाद भी जांच में कोई प्रगति नहीं हुई है। इसमें कौन-कौन से कर्मचारी और अधिकारी शामिल रहे, अब तक उनके नाम सामने नहीं आ सके हैं।

नगर निगम के रिकॉर्ड में एसएसपी का बंगला “आईपीएस हाउस” के नाम से दर्ज है। सिविल लाइंस के आवास विकास कॉलोनी में स्थित इस एसएसपी बंगले पर 1927 से 2003 तक किसी ने मालिकाना हक का दावा नहीं किया था। लेकिन 2003 में अधिवक्ता संजय धवन ने इस बंगले को अपना बताते हुए कोर्ट में दावा ठोक दिया।

2005 से एसएसपी बंगले का पांच हजार रुपये प्रतिमाह किराया अधिवक्ता को भुगतान किया जाने लगा। उस समय मुरादाबाद में डॉ. जीके गोस्वामी एसएसपी थे। इसके बाद कई एसएसपी आए और गए, लेकिन किसी ने भी अधिवक्ता के दावे की सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की। न तो दस्तावेजों की जांच कराई गई और न ही पुलिस स्तर से इसकी पड़ताल की गई कि अधिवक्ता ने बंगले पर अपना दावा क्यों ठोका था।

2019 में संजय धवन ने किराया बढ़ाने की मांग की। जब मांग पूरी नहीं हुई, तो मामला कोर्ट में पहुंच गया। कई साल तक किराए को लेकर कोर्ट में मामला चलता रहा। तत्कालीन एसएसपी हेमराज मीना ने किराया देना बंद कर दिया। जब जांच कराई गई, तो फर्जीवाड़ा सामने आया। इसके बाद सिविल लाइंस थाने में संजय धवन समेत तीन लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया।

19 साल में 32 पुलिस कप्तानों से धोखाधड़ी के बावजूद, चार महीने बाद भी पुलिस जांच पूरी नहीं हो पाई है। एसएसपी सतपाल अंतिल के अनुसार, इस फर्जीवाड़े की जांच जारी है और जो भी कर्मचारी इसमें शामिल रहे होंगे, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा।

यह भी उल्लेखनीय है कि 1927 से पहले यह बंगला पुलिस ट्रेनिंग सेंटर के एसपी का आवास था। बाद में, यह मुरादाबाद के एसएसपी के लिए आवंटित कर दिया गया। यह आवास लगभग 6000 वर्ग मीटर में फैला हुआ है।

2003 में संजय धवन ने कोर्ट में दावा पेश किया था, जिसमें उसने इस बंगले को अपना बताया था। लेकिन पुलिस की ओर से इस मामले में मजबूत पैरवी नहीं की गई। पुलिस अधिकारियों ने कोर्ट में पेश दस्तावेजों की जांच भी नहीं कराई, जिसके चलते संजय धवन के पक्ष में फैसला हो गया।

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